"बुंदेलखंडी में संयम पुरुषोत्तम पूजा"
धन्य धन्य जो महामहोत्सव,शब्द मौन हो जावत है।
विशुद्ध गुरु को दर्शन करके,रौम रौम गुण गावत है॥
समयसार के आत्म विजय की,धर्म ध्वजा फहरावत है।
ई से ई धरती पे गुरुवर,कुंदकुंद कहलावत है॥
हम सब गुरुवर खूबई चतुरा,पूजन तुमरी गावत है।
दर्पण में निज चेहरा लखके,निज के दोष मिटावत है॥
संयम के पुरुषोत्तम गुरुवर,आओ दो दो बात करें।
झट्टई हमको कला बता दो,मुक्ति बल्लभा साथ वरें॥
*ऊँ ह्रूँ संयम पुरुषोत्तम आचार्य श्री 108 विशुद्धसागर मुनीन्द्र अत्र अवतर सम्बोषट आव्हानन।*
*अत्र तिष्ठ ठः ठः स्थापनं।*
*अत्र मम सन्निहितो भवः भव वषद सन्निध्किरणं।*
"जल"
घर घूलौ में निज घर भूले,जल को खेल रचायो है।
आयु जल पल पल खिसकत है,निज को खेल बनायो है॥
अब ई जल में जीव दिखत हैं,कबलों ई को पीने है।
गुरु सम जल के जीव बचाके,ध्रुव स्वभाव में जीने है॥
*ऊँ ह्रूँ संयम पुरुषोत्तम आचार्य श्री 108 विशुद्धसागर मुनीन्द्राय जन्म जरा मृत्यु विनाशनाय जलम् निर्व स्वाहा।*
"चंदन"
झूम झूम के मधुर ताल मैं,खूबई भक्ति दिखावत हैं।
प्रतिद्वंदी को वैभव लखके,फिर काहे जल जावत हैं॥
मंदिर जाके मंदिर जाके,मन के अंदर जाना है ।
प्रतिद्वंदी को गले लगा के,गुरुवर सम बन जाना है॥
*ऊँ ह्रूँ संयम पुरुषोत्तम आचार्य श्री 108 विशुद्धसागर मुनीन्द्राय संसार ताप विनाशनाय चन्दनं निर्व स्वाहा।*
"अक्षत"
धन कंचन जड़ वैभव जग मैं,सब को सुख दिखलावत है।
गुरु चरणों में भीड़ लगा जग,फिर काहे को आवत है॥
जड़ विषयो में सुख होतो तो,तुमने काहे को छोड़ो।
वो परमातम को सुख दे दो,जी से पथ तुमने मोडो॥
*ऊँ ह्रूँ संयम पुरुषोत्तम आचार्य श्री 108 विशुद्धसागर मुनीन्द्राय अक्षय पद प्राप्ताय अक्षतं निर्व स्वाहा।*
"पुष्प"
खुद ने खुद पे जीत करी तब,भेष दिगम्बर धार लियो।
काम लुटेरो डर के भागो,ब्रह्मचर्य से बार कियो॥
शील पैक है ज्ञान नेत्र से,ई से उजयारो फैंके।
संयम पुष्प मनोहर दो गुरु,निज उपवन सारो महके॥
*ऊँ ह्रूँ संयम पुरुषोत्तम आचार्य श्री 108 विशुद्धसागर मुनीन्द्राय कामवाण विनाशनाय पुष्पं निर्व स्वाहा।*
"नेवैध"
जा तृष्णा की ज्वाला गुरुवर,भव बन में झुलसावत है।
जितनों ईधन डालो ई में,उतनी ही भवकावत है॥
तृष्णा को गुरुवर ने जीतो,इक्षाये सब हार गईं।
वैरागी वा कला बता दो,जी से इक्षा पार भईं॥
*ऊँ ह्रूँ संयम पुरुषोत्तम आचार्य श्री 108 विशुद्धसागर मुनीन्द्राय क्षुधा रोग विनाशनाय नैवेद्य निर्व स्वाहा।*
"दीप"
बाप मतारी सब को त्यागो,मोह कर्म घबराबत है।
गुरुवर की सम्यग ज्योति से,मिथ्यातम नश जावत है॥
भव भव के जा अंधकार में,निज को नई भटकाने है।
मोक्ष मार्ग को नेता बनके,सम्यग दीप जलाने है॥
*ऊँ ह्रूँ संयम पुरुषोत्तम आचार्य श्री 108 विशुद्धसागर मुनीन्द्राय मोहांधकार विनाशनाय दीपम् निर्व स्वाहा।*
"धूप"
सब करमन को राजा रोवे,इक्षाये सब हार गईं।
बैरागी की तप अग्नि में,मोह कर्म को बार गईं॥
टिकिट मिलो रत्नत्रय को जो,शिव गाड़ी भी मिल जाहे।
हमको गुरुवर लिंगा बिठालो,हमरो टिकिट सुरझ जाहे॥
*ऊँ ह्रूँ संयम पुरुषोत्तम आचार्य श्री 108 विशुद्धसागर मुनीन्द्राय अष्टकर्म दहनाय धूपम् निर्व स्वाहा।*
"फल"
मन वच तन के नष्ट करन को,तीन गुप्ती को धारत है।
हाथ पे हाथ जमावे निज में,जिनवर विम्ब निहारत है॥
कर्ता धर्ता नई है गुरुवर,हाथ पे हाथ जमाने है।
मोक्ष नगर को मीठो फल गुरु,तुमरे संगे पाने है॥
*ऊँ ह्रूँ संयम पुरुषोत्तम आचार्य श्री 108 विशुद्धसागर मुनीन्द्राय मोक्षफल प्राप्ताय फलम् निर्व स्वाहा।*
धन्य धन्य अहोभाग्य हमारे,हम नर भव पे गर्व करें।
विशुद्ध गुरु कलयुग मैं लखके,सतयुग जैसो पर्व करें॥
समयसार के संत निराले,कोनऊ नई एजेंडा है।
वत्शल भावी गंगा बहती,करती मन को ठंडा है॥
दुर्लभतम गुरुवर की चर्या,ने तेरा ने बीस करें।
सब संतन को गले लगाएं,राग द्वेष की टीस हरें॥
समयसार के आत्म विजय की,धर्म ध्वजा फहरावत है।
ई से ई धरती पे गुरुवर,कुंदकुंद कहलावत है॥
जिनशासन की शान गुरु को,गौरव हमें बढ़ाने है।
गुरु के पद चिन्हों पे चलके,पद अनर्घ्य प्रगटाने है॥
*ऊँ ह्रूँ संयम पुरुषोत्तम आचार्य श्री 108 विशुद्धसागर मुनीन्द्राय अनर्ध्य पद प्राप्ताय अर्घ्य निर्व स्वाहा*
जा तन्नक सी किरण आग की,जगत भस्म कर देवत है।
*विशुद्ध ज्ञान की किरण मनोहर,मिथ्यातम हर लेवत है॥टेक॥*
बचकईयां जे संत निराले,तन्नक सी इनकी काया।
बड़े बढ़ो की चाल बदलते,अद्भुत सम्मोहन माया॥1॥
*मुस्काती गुरुवर की वाणी, सम्मोहित कर देवत है।*
*विशुद्ध ज्ञान की किरण मनोहर,मिथ्यातम हर लेवत है॥टेक॥*
चंबल को इतिहास भयानक,बड़े बड़े डाकू रहते।
बदल गयो इतिहास उते को,ज्ञान सूर्य साधु प्रगटे॥2॥
*जोन धरा को कोसत थे अब,मन श्रधा से टेरत है॥*
*विशुद्ध ज्ञान की किरण मनोहर,मिथ्यातम हर लेवत है॥टेक॥*
पौष अमावस शनिवार को,अद्भुत दिव्य प्रकाश भयो।
कौन समझतो थो धरती पे,कुंद कुंद को वास भयो॥3॥
*रामनरायण रत्ती माँ के,लल्ला को जग हेरत है॥*
*विशुद्ध ज्ञान की किरण मनोहर,मिथ्यातम हर लेवत है॥टेक॥*
बटुआ पाकिट बैन्क नहीं है,डब्बल की का अभिलाषा।
पिच्छी कमंडल धारी गुरुवर,लोभ त्याग की परिभाषा॥4॥
*कंकर पत्तर में नई उलझे,निजानन्द रस लेवत है॥*
*विशुद्ध ज्ञान की किरण मनोहर,मिथ्यातम हर लेवत है॥टेक॥*
ने तेरा ने बीस पंथ के,गुरुवर बड़े निराले है।
सब संतन को गले लगाएं,आगम पंथी वाले है॥ 5॥
*भिंड नगर को संत निरालो,समय को सार बिखेरत है।*
*विशुद्ध ज्ञान की किरण मनोहर,मिथ्यातम हर लेवत है॥टेक॥*
गुरु भक्ति से पुण्य की धारा,अविचल अमर अनंत बहे।
हम भक्तन की सांस गुरुवर,सदा सदा जयवन्त रहें॥6॥
*संयम के पुरुषोत्तम गुरु को,लघुनन्दन मन टेरत है। *विशुद्ध ज्ञान की किरण मनोहर,मिथ्यातम हर लेवत है॥टेक॥*
*ऊँ ह्रूँ संयम पुरुषोत्तम आचार्य श्री 108 विशुद्धसागर मुनीन्द्राय अनर्ध्य पद प्राप्ताय जयमाला पूर्ण अधर्म निर्व स्वाहा*
-रचियता अध्यात्मिक कविह्रदय लघुनन्दन जैन सियावास तीर्थ बेगमगंज mp
🌹🌹आचार्य श्री 108 विशुद्धसागर जी महाराज का महा चमत्कारी अर्घ🌹🌹
*धन्य हुआ यह नर भव मेरा,विशुद्ध गुरु का दर्श किया।*
*दिव्य दिगम्बर मुद्रा लखकर,निज स्वरूप का दर्श किया॥*
*ज्ञान कमल के मध्य बिराजे,आगम गँगा बहती है।*
*गुरु मुख से जिन अमृत सुनकर,ज्ञान लता निज खिलती है॥*
*धर्म तीर्थ जिन शासन के गुरु,महा-राजा कहलाते है।*
*रत्नत्रय महा दिव्य खड्ग से,राग अरु द्वेष नशाते है॥*
*भव समुद्र मे डूब रहा था,ज्ञानामृत की नाव मिली।*
*लघुनँदन वंदन करता है,सम्यक दर्शन ज्योत जली-2॥*
*🌹ॐ ह्रूँ अध्यात्म योगी चर्या शिरोमणि आचार्य श्री 108 विशुद्धसागर मुनीन्द्राय अनर्घ्य पद प्राप्ताय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा🌹*
🏻*🌹🌹🌹॥जय पार्श्वनाथ॥🌹🌹🌹*
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*🌹भारत🌹भारत🌹भारत🌹"प्रेम वा मिठास घोलो-मिलकर सब हिन्दी बोलो"🌹भारत🌹भारत🌹भारत🌹*
*"आप अपनी जिंदगी मे एक वार श्री सियावाश तीर्थक्षेत्र(बेगमगंज मध्य प्रदेश)आये आपकी जिंदगी बदल जयेगी"*
"मे हाथो मे कलम लिये,सोचता ही रह गया।
गुरु महिमा वर्णन करते-2,जीवन छोटा पड़ गया॥
"जैनागम की अटूट प्रभावनाके लिये आप अपने पेज- *श्री विशुद्ध धारा* से जुड़ेबा अपने मित्रों को भी बताये- http://m.facebook.com/vishudhdadhara.parivar बाआप श्री विशुद्ध धारा परिवार से व्हट्साप पर भी जुड सकते है-
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*नमोस्तु शासन जयवंत हो!*
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